सूर्य पर भी ग्रहण आता है

देखो न
सूर्य पर भी ग्रहण आता है
पल भर के लिए ही सही
उसका बिम्ब भी छिप जाता है।

चाँद को अपनी छाया पर गुमान है
मगर यह दिवाकर अभी भी
आग के गोले के समान है
हीरे की अंगूठी सा दमकता है
सूरज गुमनामी में भी चमकता है।

वह जानता है
यह तो परिक्रमाओं का खेल है
केवल चंद क्षणों का फेर है
धैर्य रखने वाला सबसे बड़ा दिलेर है।

आज बुरा तो कल भला
वक़्त इसी नियम से है चला
नित्य द्वेष नही, प्रीत नही
हार नही, जीत नही।

इसीलिए
ग्रहण में भी जो तितिक्षा को ना गवाता है,
वही पराक्रमी अंत मे सूर्य कहलाता है।

-सोनिया डोगरा

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14 Replies to “सूर्य पर भी ग्रहण आता है”

  1. ग्रहण आता है,चला जाता है,
    कब थमता है पल।
    शायद जिन्दगी की यही रीत है।
    बेहतरीन कविता।👌👌

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