मैं इश्क़ हूँ

सच मे,
तुम्हारी कसम,
चाँद को हथेली पर रख सकता हूँ
मैं इश्क़ हूँ
कुछ भी कर सकता हूँ!
तारों की बारात
सजा सकता हूँ
बिंदु से तरंगे
उठा सकता हूँ
मन को आतुर
कर उसकी थाह लेता हूँ
मैं इश्क़ हूँ
इन्द्रजालों में पनाह लेता हूँ।
मैंने आसमान को लाल भी रंगा है
पंखों के बिना
उड़ने का स्वाद भी चखा है,
फीकी खिचड़ी को भोज बताया है
मैं इश्क़ हूँ
मैने दिल को सजदे में झुकाया है।
सूझ बूझ सब त्याग कर
गोते लगाता हूँ
बादामी नैनों में अक्सर
समुद्र की गहराई पाता हूँ
हंसती आंखों से छलक जाता हूँ
मैं ईश्क़ हूँ
अपना अक्स किसी और
में पाता हूँ।
भेद-भाव, मज़हब-जात
मेरा कोई आकार नही
मैं इश्क़ हूँ
सीमांतों से मेरा सरोकार नही।
नादान कह कर मुझे
खिल्ली उड़ाते हैं
मुझसे रश्क़ भी करते हैं वो
जो मुझे नही पाते हैं।
जब तक रहूँ
जीने का एहसास दिलाता हूँ
मैं इश्क़ हूँ
उल्कापिंड से इच्छायें सजाता हूँ।
मैं भ्रम नही
विश्वास हूँ
दिल में बस जाऊँ
तो खास हूँ।
सच मे,
तुम्हारी कसम,
चाँद हथेली पर रख सकता हूँ
मैं इश्क़ हूँ
कुछ भी कर सकता हूँ!

© सोनिया डोगरा


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24 Replies to “मैं इश्क़ हूँ”

  1. Each and every word has a trickle down effect. The smile never left my lips while I savored this amazing concoction of emotions, humour and creativity at the same time. An amazing take on such a beautiful expression 😊👍.

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति |
    “फीकी खिचड़ी को भोज बताया है
    मैं इश्क़ हूँ”
    वाह !  इश्क़ के बहुत गहरे स्वरुप का दर्शन है इस लाइन में !

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    1. वाह… शुक्रिया आपका..आपने मेरी भी पसंदीदा पंक्ति को इतनी खूबसूरती से पढ़ा।

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  3. I wish, I could live here. In these lines, in these words. I can’t say anything else, Sonia. This is love ❤ Lots of love and hugs to you. Sach mein, Ishq to sajda hai!

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