पतझड़

सुनहरा, लाल, भूरा
खूबसूरती का यह रंग मुझे लगता है अधूरा।

क्यों पत्तियाँ गिरा देते हैं पेड़
जर्जर होते जीवन को
अब निर्जन भी बना देते हैं पेड़।

अवसान जैसे खुद की ही बड़ाई करता हो
मौत की अजीब सी नुमाइश करता हो।

परिणति का यह कैसा है स्वरूप
जो मन को कर देता है अभिभूत।

पत्तों की सरसराहट लगने लगती है संगीत
मंद होती श्वसन का जैसे कोई अंतिम सा गीत।

मैं हैरान होती हूँ
जब देखती हूँ
मौत से आलिंगन का यह अजब सा जश्न!

-सोनिया डोगरा

(All rights reserved)

(Image source: pixabay)


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14 Replies to “पतझड़”

  1. कई रंग जीवन के पतझड़ भी एक दिन आएगा,
    एक दिन झड़ जाएंगे पत्ते,कलियाँ और जीवन भी। खूबसूरत कविता।👌👌

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