वो, तुम्हारे भीतर वाली दुनिया

वो
तुम्हारे भीतर वाली दुनिया
कभी शांत, स्थिर,
मूक सी,
आडंबर को ताकते हुए
निस्तब्ध रहकर
सिद्धी पाती है।

कभी अचानक…
उपद्रवी सी होकर
हंगामा मचाती है।
धरातल खंगर सा लगे
पर भीतर अश्रु बहाती है।
बेदाम, दुस्साहसी बन कर
आज़ादी चाहती है।

फिर तुम
उसका हाथ थाम लेते हो।
लम्बा सा सुफियाना कलाम सुनाकर,
उसे संत, महात्मा बना देते हो।
समझदारी का पाठ पढ़ाकर
फ़लक पर बिठा देते हो।

वो
तुम्हारे भीतर वाली दुनिया
फिर इस दासत्व को न चाहकर भी
स्वीकार कर लेती है,
और आजीवन कैद रहने को
अपना भाग्य मान लेती है।

-सोनिया डोगरा


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14 Replies to “वो, तुम्हारे भीतर वाली दुनिया”

  1. तुम्हारे भीतर वाली दुनिया” jaisi bhi, shayad bahott khoob hai, aur meri hai!!
    A wonderful share! Thanks so much 🙂

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  2. God bless you always…
    Your words explain our inner state of mind so well… I think at some point… We all feel the same… So well expressed
    Keep it up… 👍

    Liked by 1 person

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