रहती है सिर्फ याद

रास्ते सफर बन जाते हैं
ढूंढ लेते हैं नए सिरे
अंत से पहले।
बालों में उलझा हवा का झोंका
झटक जाता है,
समय की छलनी से
मैं देखती हूँ
पहाडों पर बिखरती धूप
मुट्ठी में भर लायी थी जो,
उस सुबह की भीनी सुगंध
को चुटकी भर सूंघ लेती हूँ।
दर्पण सा साफ था
नीले आसमान का टुकड़ा
जो मेरी खिड़की
के ठीक ऊपर रहता था…

यहाँ कोहरा घना है,
हवा फीकी
धूप धुंधली
और सुबह उदास।
वो नीले आसमान का टुकड़ा
यहाँ नही रहता,
रहती है सिर्फ याद!

-सोनिया डोगरा

(All rights reserved)


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