पतंगों की जंग

अब शीत लहर घबराई सी
ढूंढे नए छोर,
सूरज की किरणों को देखो
खींचो पतंग की डोर !

आसमान में रंग हैं बिखरे,
बिखरे चहुँ ओर
मुंडेरों के पीछे से
सब मचा रहे हैं शोर!

छतों के ऊपर देखो कैसा
मेला लगा है यार
धरा भेज रही है जैसे
नभ को अपना प्यार

दोस्त हो रहे हैं सब साझा
सही से पकड़ो अपना मांझा
ढीली छोड़ो डोर,
लपटो, खींचो, जल्दी काटो
मची हुई है होड़!

सूरज पर भी मस्ती है छाई
वो भी तैयार खड़ा है भाई
छिड़ चुकी है पतंगों की जंग
देखो कौन है किसके संग!

“अबे धीरे!
मांझा सही नही है यार!
आज तो मैं दिखा ही दूंगी!
तेज़ है मेरी डोर की धार!”

ऐसा युद्घ हम रोज़ लड़ें
नही किसी को हो एतराज़
बिना लकीरों के जब उड़ पाए
कोई पतंग कहीं उस पार,
कोई पतंग कहीं उस पार!

Sonia Dogra

(All rights reserved)

Image source: pixabay


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8 Replies to “पतंगों की जंग”

  1. उड़े वही जो दिखे यही
    कहते उस को पतंग यहा
    पंख नही होते उसके मगर
    होते हौसले बुलंद यहा।।

    हवाओ से वो लेती टक्कर
    आसमान खुल्ला हैं वहाँ
    नही राज सदा पतंगों का
    राज हवाओ का है वहाँ।।

    है छोटी पर दिखती बड़ी
    कहते बुलन्दी उसकी यहां
    डोर का सहारा होता उसको
    ओर बाजुए कातिल सँग यहां।।

    डरना नही लड़ना सीखा
    करती सरहद की हिफाजत सदा
    जहा तक उसकी हद होती
    वो रहती अपनी हद में वहाँ।।

    आज पतंगे बोल रही
    निवेदन कर रही यहां
    जंग से कभी भला ना हो
    जंग विनाश का द्वार यहां।।

    देखो हालत हमारी देखो
    कैसे लड़ के हम मरे
    कल तक राज आसमान में
    आज धरा पर हम है पड़े।।

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