अब शीत लहर घबराई सी ढूंढे नए छोर, सूरज की किरणों को देखो खींचो पतंग की डोर ! आसमान में रंग हैं बिखरे, बिखरे चहुँ ओर मुंडेरों के पीछे से सब मचा रहे हैं शोर! छतों के ऊपर देखो कैसा मेला लगा है यार धरा भेज रही है जैसे नभ को अपना प्यार दोस्त हो …
खोल दो…
खोल दो भींची हुई मुट्ठियाँ जकड़े हुए अचम्भों के दरवाज़े विस्मय पर लगे ताले। मान लो कि लोमड़ी और गीदड़ का ब्याह है और पहाड़ के पीछे इंद्रधनुष छिपा है। दिखाने दो दिल को उछाल पट पर कलाबाजियाँ सलीके से आखिर मिला क्या है। सहला लो थोड़ी सी बेपरवाहियाँ विवेक में भला ऐसा क्या है। …
वो, तुम्हारे भीतर वाली दुनिया
वो तुम्हारे भीतर वाली दुनिया कभी शांत, स्थिर, मूक सी, आडंबर को ताकते हुए निस्तब्ध रहकर सिद्धी पाती है। कभी अचानक... उपद्रवी सी होकर हंगामा मचाती है। धरातल खंगर सा लगे पर भीतर अश्रु बहाती है। बेदाम, दुस्साहसी बन कर आज़ादी चाहती है। फिर तुम उसका हाथ थाम लेते हो। लम्बा सा सुफियाना कलाम सुनाकर, …

