आसमान का रंग

(Image source: pixabay) एक बार की बात है, एक आदमी बीमार पड़ गया तो उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। वह पूरा दिन बिस्तर पर पड़ा रहता था। उसके कमरे में बस एक छोटा सा रोशनदान था, जिससे आसमान साफ नज़र आता था। मगर आकाश के एक टुकड़े के सिवा उसे कुछ न दिखाई …

तुम कहते हो दिसंबर खुदगर्ज़ है…

तुम कहते हो दिसंबर खुदगर्ज़ है दिन और साल, दोनो चुरा ले जाता है। इस बार फिर सर्दी की खटखटाहट सुन रही हूँ बांवरे दिसंबर की आहट सुन रही हूँ। देखी होगी तुमने भी उसकी खुदगर्ज़ी; सिहरन भरी रातों को सिगड़ी का साथी बना देता है कभी प्यार को शाल की तरह ओढ़ा देता है …

पतझड़

सुनहरा, लाल, भूरा खूबसूरती का यह रंग मुझे लगता है अधूरा। क्यों पत्तियाँ गिरा देते हैं पेड़ जर्जर होते जीवन को अब निर्जन भी बना देते हैं पेड़। अवसान जैसे खुद की ही बड़ाई करता हो मौत की अजीब सी नुमाइश करता हो। परिणति का यह कैसा है स्वरूप जो मन को कर देता है …

टी वी की याद में…

शिमला की गर्मियां गर्मियों जैसी होती ही कहाँ है। सूरज बेशक सर चढ़ के बोले, शाम की शीतल बयार पहाडों में होने का एहसास दिला ही देती है। ऐसे में 1984 की गर्मियों की एक शाम याद है। एक छोटी सी लड़की नीली हरी फ़्रॉक में अपने पापा के पीछे दौड़ रही थी। उसके पापा …

वो, तुम्हारे भीतर वाली दुनिया

वो तुम्हारे भीतर वाली दुनिया कभी शांत, स्थिर, मूक सी, आडंबर को ताकते हुए निस्तब्ध रहकर सिद्धी पाती है। कभी अचानक... उपद्रवी सी होकर हंगामा मचाती है। धरातल खंगर सा लगे पर भीतर अश्रु बहाती है। बेदाम, दुस्साहसी बन कर आज़ादी चाहती है। फिर तुम उसका हाथ थाम लेते हो। लम्बा सा सुफियाना कलाम सुनाकर, …

फ़हरिस्तों वाली ज़िन्दगी

खुले मैदानों से निकलकर फ़हरिस्तों मे कैद हो गई ज़िन्दगी न जाने कब आंकड़ों मे खो गई सीलन भरी दीवार पर धूप की लकीर खींचा करती थी ज़िन्दगी कभी थोड़े मे ही खुशियां सींचा करती थी आज बेहिसाब बकिट लिस्टों के बारे मे हो गई ज़िन्दगी न जाने कब आंकड़ों मे खो गई हर एक …