अंग्रेज़ी में एक कहावत है, Grass is greener on the other side. दूर से जब हम क़ामयाबी और प्रशंसा को देखते हैं तो वो ताजमहल प्रतीत होती है। मगर पास आने पर वो कामयाबी सिर्फ एक खूबसूरत मक़बरा बन कर रह जाती है। उसका मधुर सा लगने वाला संगीत शोर बन जाता है। ऐसे ही कुछ विचारों पर प्रस्तुत है एक कविता…
वो तो एक गीत था
हरे मैदानों में बहता हुआ
सूरज की लालिमा में विलीन
निर्मल साधना सा
उत्सव मनाता संगीत था
रंगीन पंखों पर उड़ान भरता
मुझे सुनाई दे रहा था
कहीं दूर से आता
एक मधुर तराना
मुझे उसकी चाह हुई
जीवन की जैसे वो
राह हुई
फिर वो कुछ
करीब आया
लगा कोई
रकीब आया
अब वो संगीत नही
शोर था
मेरे तो चारों ओर था
कानों को माने
काट रहा था
मैं अब उससे
भाग रहा था
ताली ने कैसा
यह नाद बजाया
उत्सव सा मन
मायूस हो आया
हरा मैदान अब
कहीं दूर था
कुछ अजीब
मन के हालात थे
स्तुतियों ने
बहा दिए जज़्बात थे
मैं नही चाहता था
शाबाशियों का ढेर
मुझे फ़क़त अपनी
कलम का इंतज़ार था
करताली नही
मैं जान गया था
लिखना ही उपहार था
लिखना ही उपहार था।
©Sonia Dogra
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
Thank you.
So true: likhna hi uphaaar hai–aur hamesha rahega.
Lovely words and click.
behad pyara
Nice poem
बहुत खूब। लिखना ही उपहार था।।।
Your writings are truly gifts for readers.
Glad you liked it Pragun. Thanks!
What a beautiful poem – often we desire for something without knowing the repercussions – Hey I downloaded your book – going to give it a read
Thank you Shantanu both for the book and for this.
My absolute pleasure