
उड़ने का हौंसला
हम दिखाते नही,
सपनों के शहर
अब हम जाते नही।
बहती हवा
क्यों पेड़ों की शाखाओं
से उलझ गई,
पानी की लहर देखो
उफ़ान से पहले
ही सिमट गई,
उड़ती पतंग भी
अपनी डोर से आके लिपट गई।
पिंजरों से हमें
शिकायत है बड़ी
फिर भी उड़ने का हौंसला
हम दिखाते नही,
सपनों के शहर
अब हम जाते नही।
आसमानों की मुराद
हमें कम तो नही
मगर पैरों को हम
पंक से बाहर लाते नही।
बेलों के सहारे
आ भी जाएं किनारे
तो बांध लेते हैं
उन्ही से हम पांव हमारे।
और इसी तरह
रत्ती भर का फासला लिए
शाखा, डोर, पंक, बेलों का आसरा लिए
हम हकीकत के घर बसाते हैं,
कहते बहुत हैं
मगर ज़्यादा छुपाते हैं।
कैदखानों की आदत सी हो गयी है हमें
इसलिए उड़ने का हौंसला
हम दिखाते नही
सपनों के शहर
अब हम जाते नही,
सपनों के शहर
अब हम जाते नही।
-सोनिया डोगरा
(All rights reserved)
क्या ख़ूब लिखा है
कैदखानों की आदत सी हो गयी है हमें
इसलिए उड़ने का हौंसला
हम दिखाते नही
क्या खूबसूरत पंक्तियाँ है जी……हर एक शब्द हकीकत को बयान करते है…….दिल ले गए आपके शब्द🙏🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद!💐💐
Sonia you rock. The emotions are so well portrayed.
Thank you Shantanu. So kind of you!
My absolute pleasure
Lovely Sonia! Beautifully written!
Thanks Radhika. So glad you read my hindi poetry!
Yes. My hindi is not too good. But I Ioved this one. 😊😊
umda 💞
शुक्रिया!
बहुत अच्छा लिखा है।
Thank you!💐💐
सपनों के शहर हम जाते नहीं, शायद उम्मीदों का दामन छोड़ दिया है।
ऐसा भी क्या हुआ है जनाब! जो सबने सपने देखना छोड़ दिया है।
बंद कर लिए है खिड़की और दरवाज़े आशाओं के।
जाने क्यों आशंकाओं से नाता जोड़ लिया है।
क्या बात है। मुझे लगता है जिंदगी की मशरूफियात ऐसी है कि वो हमारी बहानाखोरी बन गयी है।
आसमानों की मुराद
हमें कम तो नही
मगर पैरों को हम
पंक से बाहर लाते नही।
बेलों के सहारे
आ भी जाएं किनारे
तो बांध लेते हैं
उन्ही से हम पांव हमारे।
pratyek panktiyan lajwab……chahat hai asmaan chhu lun……..magar ghar se pair niklte nahi hain.
Ji…Sirf pair nikalna hi mushkil nahi hota balki hum zindagi ke bahano mein fass jaate hain. Wo bahane hi hamare kaidkhaane hote hain. Thank you so much!💐💐