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एक बार की बात है, एक आदमी बीमार पड़ गया तो उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। वह पूरा दिन बिस्तर पर पड़ा रहता था। उसके कमरे में बस एक छोटा सा रोशनदान था, जिससे आसमान साफ नज़र आता था। मगर आकाश के एक टुकड़े के सिवा उसे कुछ न दिखाई पड़ता था। पूरा दिन अकेले कमरे में पड़े पड़े बेचारा करता भी क्या। उसने सोचा क्यों न मै आकाश पर एक कविता लिखूं। उस दिन आसमान खूबसूरत नीला था, जैसे नहा धोकर बैठा हो। उसका ऐसा रूप देख कर आदमी की तबीयत खुश हो गयी। उसने कलम उठाई और एक सुंदर सी कविता लिख डाली। डॉक्टर, नर्स और दूसरे मरीजों को जा जाकर अपनी कविता पढ़ाई, तो सबने खूब तारीफ की।
अगले दिन आदमी ने फिर रोशनदान से बाहर देखा तो आसमान फिर नीला नज़र आया। उसने फिर एक कविता लिख डाली। सब लोगों ने फिर तारीफ कर दी। तीसरे दिन फिर वही हुआ। मगर धीरे धीरे नीले आसमान के बारे में सुन सुनकर लोग ऊब गए। आदमी भी अपनी नीरस दिनचर्या से परेशान होने लगा। अपनी बीमारी के कारण भी मायूस रहने लगा।
फिर एक दिन गुज़रा। आदमी ने देखा कि आसमान नीला नही है और कुछ बादल से नज़र आ रहे हैं। एक चिड़ियों का झुंड भी उड़ता नज़र आया। आदमी ने अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाए और आसमान में अपरिमित अंधेरा कर दिया। अब तो वह कवि भी बन गया था।बस फिर क्या था। उसने तुरंत कलम उठाई और मौसम की नाइंसाफी के नाम की कुछ पंक्तिया लिख डाली।इस बार फिर से सब पढ़ने वालों ने उसकी कविता को खूब सराहा। कहीं न कहीं अस्पताल की दिनचर्या से तंग मरीज़ों को उस कविता में अपने जीवन का अक्स नज़र आने लगा।
अस्पताल और दवाइयों के फेर में पड़ा आदमी बस रोशनदान से बाहर देखता रहता। उसे अब अपनी ज़िंदगी बेज़ार लगने लगी थी। अब उस आदमी को सिर्फ एक आसमान की पहचान थी। काले, भूरे बादलों से भरा, सूरज को छिपाता हुआ, धमाचौकड़ी मचाता हुआ आसमान।
उसने एक बार फिर कलम उठाई और एक उदासी भरा गीत लिख डाला। अस्पताल में सबने उसका गीत पढ़ा और मायूस हो गए। उन्हें बाहर के मौसम से और आसमान से और अपने जीवन से निराशा सी होने लगी। इस तरह उस रोशनदान के बाहर सिर्फ बादल ही नज़र आने लगे। न वहां नीला रंग था और न ही सूरज की कोई किरण।
फिर एक दिन उस अस्पताल में एक बच्चा आया। उदास और हताश चेहरे देख कर वह बड़ा हैरान हुआ। उसने कारण पूछा तो सबने रोशनदान की तरफ इशारा कर दिया। बादल का एक टुकड़ा रोशनदान से भीतर झांक रहा था। बच्चे ने थोड़ी देर कुछ सोचा और फिर तेज़ी से बाहर की ओर दौड़ पड़ा। सब लोग व्याकुल होकर उसके पीछे पीछे दौड़े।
बाहर साफ नीला आसमान था। एक ठंडी, हल्की बयार वहां से गुज़र रही थी। दूर पहाड़ियां सूरज की रोशनी से लिप्त थीं।
सबकी आंखे चौंधियां गयीं। लेखक बना आदमी भी सोच में पड़ गया। आकाश तो आज भी नीला था। फिर वो कौनसा रंग देख रहा था? क्या आप बता सकते हैं?
अति सुंदर।
Thank you!
Welcome.🌷
I think he saw the perspective of life 😊
Yes Shantanu. He started viewing the world as an extension of his inner self. That’s what we mostly do. Thanks so much for reading!💐💐
You wrote it beautifully
रोशनदान से रौशनी आती है।दूर दराज खुले आसमान की गतिविधि नजर आती है। यूँ कहें तो कमरे में कैद एक दुनियाँ नजर आती है।बस देखने का नजर चाहिए।
जी। ज़िन्दगी नज़रिया ही तो है!