"Words.Words.I play with words, hoping that some combination, even a chance combination will say what I want" -Doris Lessing
तुम कहते हो दिसंबर खुदगर्ज़ है
दिन और साल, दोनो चुरा ले जाता है।
इस बार फिर सर्दी की खटखटाहट सुन रही हूँ
बांवरे दिसंबर की आहट सुन रही हूँ।
देखी होगी तुमने भी उसकी खुदगर्ज़ी;
सिहरन भरी रातों को सिगड़ी का साथी बना देता है
कभी प्यार को शाल की तरह ओढ़ा देता है
तो कभी, उसे चाय की प्याली बना कर मेरे हाथों में थमा देता है।
बंद खिड़कियों को रात का सन्नाटा सुनाता है,
दिसंबर ही तो खुद से तुम्हे भी मिलवाता है।
क्योंकि सर्द शामों का ही तो यह उसूल है, अपनी कैफियत पूछने का निराला सा एक दस्तूर है।
कोहरे की चादर को भींचती हुई
सूरज की उस किरण को तो देखो
जो धरती से प्रेम रचाती है,
न जाने कितनी दूर से वो उसे मिलने आती है।
मायूसी के लम्हो में
शीत की प्रीत जगाता है,
सर्दी का मौसम तो यादों की तपिश से ही कट जाता है।
फिर क्यों तुम कहते हो कि दिसंबर खुदगर्ज़ है?
-सोनिया डोगरा
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Image source:pixabay
दिसम्बर के महीने का ऐसा विश्लेषण मैंने पहली बार सुना है,कमाल।
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Thank you Deepika!!💐💐
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उम्दा
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शुक्रिया
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How lovely!!
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Loved it😍
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Thank you!💐💐
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I just love love love this –
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So glad Shantanu 🤗🤗
So much sadness all around nowadays. Wanted to feel nice about something.
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You did a fab job
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Beautiful… So beautifully expressed ….I’ve become a big fan of yours… God bless you always 👍
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Means so much ma’am. Thank you and love❤️❤️
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बहुत खूबसूरत!
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शुक्रिया!
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