खोल दो
भींची हुई मुट्ठियाँ
जकड़े हुए अचम्भों के दरवाज़े
विस्मय पर लगे ताले।
मान लो
कि लोमड़ी और गीदड़ का ब्याह है
और पहाड़ के पीछे इंद्रधनुष छिपा है।
दिखाने दो
दिल को उछाल पट पर कलाबाजियाँ
सलीके से आखिर मिला क्या है।
सहला लो
थोड़ी सी बेपरवाहियाँ
विवेक में भला ऐसा क्या है।
उन्मुक्त कर दो साड़ी में बंधी सभी गांठों को
याद रखने में तकलीफ है
भूल जाने में तो सब भला है।
समय का घोड़ा थाम लो
आओ थोड़ा आराम लो
पुरानी गली में कुछ कड़ियां तोड़ आये हो
बचपने में तुम अपना बचपन
बेवजह वहाँ छोड़ आये हो।
-सोनिया डोगरा
अति सुंदर आह्वाहन।
This poetry gives such nice vibes
both happy and free