"Words.Words.I play with words, hoping that some combination, even a chance combination will say what I want" -Doris Lessing
यूँ ही एक भ्रम सा पाल रखा है कि जो प्रत्यक्ष है वही सत्य है और स्थायी भी । हिमालय की ऊँचाईयों पर बसने वाले जीव शायद ही घाटियों की खोज खबर रखते हैं। और कहीं पहुँचने की जल्दी में भागती हुई नदी क्या जाने कि पर्वत की भाँति अचल रहना भी कुछ होता है। ठीक उसी तरह जैसे वह पर्वत मान बैठा है कि कल-कल बहती नदी केवल एक मिथ्या है। बर्फ के रेशों को देखो तो भला- पूछते हैं कि ऊष्मा किसकी परिकल्पना है? और सूरज की तपिश कैसे शीत लहर की खिल्ली उड़ाती जाती है। रोशनी से लबालब यह दिन कहाँ मानता है कि कहीं दीपक की लौ मात्र है? रात का यथार्थ तो सिर्फ अंधेरे को मालूम है। धरती भी तो आसमां के अस्तित्व से अंजान है। बस इन सब की तरह मैंने भी एक भ्रम पाल रखा है कि जो प्रत्यक्ष है वही सत्य है और स्थायी भी! शायद तुमने भी …!!!
Picture credit: Sarah Original: Art Arena
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